ख्यात नाम हज्जाम हूं ,
नाम दिलीप कुमार है ।
पर दढियलों का शहर है ये ,
मेरा हर हुनर बेकार है ॥
मस्तमौला मुसाफिर हूँ ,
मेरा हर अंदाज निराला है।
जिन हादसों में लोग मरते हैं,
उन्ही हादसों ने मुझको पाला है॥
Bhut behtreen kvita....:):):)
जवाब देंहटाएं